आलोक कौशिक,
मीडिया सूचना स्त्रोत के रुप में खबरें पहुंचाने का काम करता है, तो वहीं हमारा मनोरंजन भी करता है। मीडिया जहां संचार का साधन है, तो वहीं परिवर्तन का वाहक भी है। इसी वजह से एडविन वर्क द्वारा मीडिया को ‘लोकतंत्र का चौथा’ स्तंभ कहा गया था। भारत में मीडिया को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है। यानी की प्रेस की आजादी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है। लेकिन, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निरंतर हो रही पत्रकारों की हत्या, मीडिया चैनलों के प्रसारण पर लगायी जा रही बंदिशें व कलमकारों के मुंह पर आए दिन स्याही पोतने जैसी घटनाओं ने प्रेस की आजादी को संकट के घेरे में ला दिया है।
आज ऐसा कोई सच्चा पत्रकार नहीं होगा, जिसे रोज-ब-रोज मारने व डराने की धमकी नहीं मिलती होगी।
कुछ महीनों पहले बिहार के आरा ज़िले के गड़हनी थाना क्षेत्र में दो पत्रकारों की कथित तौर पर हत्या कर दी गई। पत्रकार नवीन निश्चल और उनके सहयोगी विजय सिंह बाइक से जा रहे थे तभी गांव के पूर्व मुखिया और उसके बेटे ने अपनी स्कॉर्पियो उनके ऊपर चढ़ा दी। मौके पर ही दोनों की मौत हो गई।
दूसरी घटना सासाराम की है जहां एक पत्रकार को अपराधियों ने गोली मार दी। हमले में पत्रकार गंभीर रूप से घायल हो गया। घटना संझौली थाना के जिगनी पुल के पास की है। पत्रकार विंध्याचल उपाध्याय अपने एक सहयोगी के साथ बाइक से अपने घर खैरा भुतहा लौट रहे थे। इसी दौरान रास्ते में घात लगाकर बैठे बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी। बदमाश घटना को अंजाम देकर फरार हो गए। पत्रकार के सहयोगी ने बताया कि बदमाशों ने उन्हें जबरदस्ती रोकने का प्रयास किया था। जब वह अपराधियों को चकमा देकर भागने की कोशिश कर रहे थे तो अपराधियों ने पीछे से गोली चला दी। इसमें से दो गोली विंध्याचल उपाध्याय के कंधे पर जाकर लगी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गये। विंध्याचल उपाध्याय जिला मुख्यालय सासाराम में आयोजित अखबार के ही एक कार्यक्रम से लौट रहे थे।
ये सिर्फ हाल में घटित घटनाएं हैं। ऐसी घटनाएं आये दिन होती रहती हैं।भारत में पत्रकारिता संकट के दौर से गुजर रही है। सच की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों पर दिनोंदिन हमले तेज होते जा रहे हैं।लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला देश के लोकतंत्र पर हमला करना है। जनतंत्र की आवाज को उठाने वाली मीडिया की ही आवाज दबाई जाएगी तो देश की उन्नति नेस्तनाबूद हो जाएगी।
आज मीडिया की दिशा व दशा को लेकर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। सत्ता, प्रशासन और समाज को बिना किसी भय के सच बताना एक पत्रकार का दायित्व होता है। यदि इसमें उसकी जान को ही खतरा हो जाये, तो फिर यह सरकार और पुलिस की व्यवस्था पर सवाल है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी को बचाये रखने की दिशा में सरकार को जल्द से जल्द कदम उठाने चाहिए। सरकार और विपक्ष के नेता मीडिया की आजादी के नाम पर बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन उस अनुरूप धरातल पर कहीं कुछ दिखलाई नहीं दे रहा। केन्द्र व राज्य की सरकारें यदि सचमुच लोकतंत्र को स्वस्थ रखना चाहती हैं, तो उन्हें इसके चौथे स्तम्भ को मजबूती प्रदान करनी ही होगी। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों, माफिया, नेताओं और आपराधिक तत्वों को उजागर करने वाले पत्रकारों के लिए सुरक्षा आवश्यक है।